" महाभारत कथा "
महाभारत कथा हिन्दू धर्म के महाकाव्य में से एक है जो महाभारती व्यास जी द्वारा रची गई थी। इस कथा में भारतीय इतिहास, धर्म, संस्कृति, राजनीति और समाज के विभिन्न पहलुओं को बड़ी महत्वपूर्णता दी गई है। महाभारत कथा को एक महाकाव्य के रूप में समझा जा सकता है, जिसमें भारतीय संस्कृति और दर्शन के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं का संक्षेपित सारांश है।
परिचय
महाभारत कथा का इतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। इसमें भारतीय इतिहास के विभिन्न युगों में हुए घटनाओं का वर्णन है जिससे हमें भारतीय संस्कृति और धरोहर की पहचान होती है। इसमें वीरता, साहस, नीति, धर्म और प्रेम के महत्वपूर्ण संदेश दिए गए हैं।
कथा के प्रमुख पात्र
महाभारत कथा में प्रमुखतः पांच पांडव, द्रौपदी, कृष्णा, कर्ण, धृतराष्ट्र, दुर्योधन और द्रोपदी जैसे कई महत्वपूर्ण पात्र हैं। पांडवों के धर्मपत्नी द्रौपदी का पात्र विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। उनका समर्थन और साहस भी कथा में उचित रूप से वर्णित है। भगवान श्रीकृष्ण भी इस कथा में महत्वपूर्ण हैं और उनके संवाद और संदेश भी अद्भुत हैं।
युद्ध का वर्णन
महाभारत कथा में पांडवों और कौरवों के बीच हुए युद्ध का वर्णन भी अत्यंत रोचक है। युद्ध के दौरान दुर्योधन के अधिकार की चाह और पांडवों की धर्मनिष्ठा के बीच युद्ध का वर्णन किया गया है। इस युद्ध में कुलमीर युद्ध और भीष्म पितामह का वध भी घटा। इसके बाद हुए कर्ण और अर्जुन के बीच युद्ध भी बड़ा रोमांचक है।
संदेश और शिक्षा
महाभारत कथा में विभिन्न पात्रों के द्वारा दिए गए संदेश और शिक्षा हमें अपने जीवन में उपयोगी ज्ञान प्रदान करते हैं। यह कथा धर्म, नीति, वचनवद्धता, इमानदारी, परोपकार, और प्रेम के महत्वपूर्ण संदेशों से भरी हुई है।
अंतिम विचार
महाभारत कथा एक ऐतिहासिक और धार्मिक एपिक है जो भारतीय संस्कृति और दर्शन के अमूल्य धरोहर का भण्डार है। इसमें विभिन्न पहलुओं का संक्षेपित सारांश दिया गया है जो एक अद्भुत संदेश और शिक्षा प्रदान करते हैं। इस कथा के माध्यम से हम धर्म, नीति, साहस, और समर्थन के महत्व को समझ सकते हैं।
महाभारत किसने लिखी
महाभारत को लिखा गया था महर्षि वेदव्यास द्वारा। महर्षि वेदव्यास एक महान ऋषि और वेदों के लेखक थे। उन्होंने महाभारत को लिखने के लिए अपने शिष्य गणेश जी की मदद ली थी। महाभारत एक महाकाव्य है और भारतीय संस्कृति में इसको बहुत महत्व दिया जाता है। इसमें भारतीय इतिहास, धर्म, दर्शन, और संस्कृति के अनेक पहलुओं का विवरण है। महाभारत को अन्य ऋषियों के साथ महर्षि वेदव्यास द्वारा रचा गया था। यह भारतीय साहित्य के एक अमूल्य रत्न माना जाता है और इसे पढ़कर हम अपने जीवन में नेतृत्व, धर्म, और सच्चे प्रेम के महत्व को समझ सकते हैं।
महाभारत मे कुल मिला कर कितणे भाग है
महाभारत में कुल मिलाकर 18 भाग हैं। ये भाग भगवान वेदव्यास द्वारा रचित एक महाकाव्य हैं, जिसमें भारतीय इतिहास, धर्म, संस्कृति, राजनीति और समाज के विभिन्न पहलुओं का संक्षेपित सारांश है। यह भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूर्ण धरोहर है और इसे पढ़कर हम अपने जीवन में नेतृत्व, धर्म, और प्रेम के महत्व को समझ सकते हैं।
महाभारत की कहानी
महाभारत भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण एपिक महाकाव्य है जिसके अंतर्गत धर्म, नीति, समाज, और प्रेम के सभी पहलूओं का संक्षेपित सारांश है। इसमें विभिन्न पांडव-कौरव वंश के सदस्यों के बीच युद्ध की कहानी दर्शाई गई है, जिसमें धर्मयुद्ध के बारे में भी चर्चा की गई है। महाभारत के इस महाकाव्य में कई युद्ध, समझौते, और बातचीत के दृश्य शामिल हैं जो इसे विशेष बनाते हैं।
पांडव-कौरव वंश की कथा
इस कहानी का आरंभ हुआ है पांडु और धृतराष्ट्र नामक दो भाइयों के बीच हुए संघर्ष से। पांडु की मृत्यु के बाद, पांडवों को अपने चाचा धृतराष्ट्र के निर्देशन में वनवास जाना पड़ा। द्रौपदी सहित पांडवों की अग्निपरीक्षा के बाद धृतराष्ट्र ने उन्हें कुरुक्षेत्र का युवराज घोषित किया। इससे दुषासन और दुर्योधन में द्वेष उत्पन्न हुआ।
दुर्योधन के कपटी चक्रव्यूह
दुर्योधन ने पांडवों को नष्ट करने के लिए चक्रव्यूह योजना बनाई। कुरुक्षेत्र युद्ध में चक्रव्यूह के कारण पांडव वीरगति के कगार पर पहुंच गए। इस युद्ध में भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण और कृपाचार्य जैसे महान सैनिकों के साथ-साथ अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव जैसे महारथियों ने भी ब्रवरी का परिचय दिया।
कृष्ण की उपस्थिति
महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण की उपस्थिति भी है जिन्होंने अपने दिव्य विचारों से पांडवों का साथ दिया और उन्हें मार्गदर्शन किया। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया जिसमें धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांत और जीवन के मार्गदर्शन के लिए समझाया गया।
युद्ध का समापन
भगवान श्रीकृष्ण की मदद से पांडव युद्ध में विजयी हुए और कौरव वंश का नाश किया। युद्ध के बाद धृतराष्ट्र, गांधारी, कौरव और राजा धृतराष्ट्र ने वनवास जा रहे पांडवों को माफ कर दिया।
नारद की सलाह
महाभारत में नारद ऋषि की सलाह और उपदेशों का भी उल्लेख है जिनसे धर्म और नैतिकता के महत्व को समझाया गया है। इसके साथ ही राजा युधिष्ठिर को भी धर्मप्रेम की महत्वपूर्ण सीख दी गई।
युद्ध के बाद की घटनाएं
महाभारत के अंत में धृतराष्ट्र, गांधारी, कौरव, और कुंती ने अपने जीवन को त्याग दिया और सन्तोष से वनवास जा रहे पांडवों के साथ एकांतवास करने का निर्णय लिया। इससे पांडव वंश की पुनर्स्थापना हुई और समाज में धर्म के जीवन में सत्यता का पालन किया गया।
महाभारत की रचना कब हुई थी?
उपनिषद काल में महाभारत की रचना हुई थी।
महाभारत में कितने भाग हैं?
महाभारत में कुल 18 पर्व हैं।
कौरव वंश के राजा कौन थे?
कौरव वंश के राजा धृतराष्ट्र और दुर्योधन थे।
कृष्ण किस वंश के थे?
भगवान श्रीकृष्ण यादव वंश के थे।
भगवद गीता कहां मिलती है?
भगवद गीता महाभारत के भीष्म पर्व में मिलती है।
महाभारत के १८ भाग Short Description
" महाभारत भाग १ "
महाभारत एक महाकाव्य है जिसमें भारतीय संस्कृति, धर्म, और इतिहास के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का वर्णन किया गया है। यह कृष्ण द्वारा कही गई एक महत्वपूर्ण कथा है जिसमें पांडवों और कौरवों के बीच हुए युद्ध का वर्णन किया गया है। महाभारत के इस पहले भाग में राजा धृतराष्ट्र के पुत्रों की उत्पत्ति, धृतराष्ट्र का राज्याभिषेक, भीष्म का वचन, और पांडवों के वनवास की कथा का वर्णन होता है। इसमें धृतराष्ट्र और पांडु के बीच राजा चुनाव के विवाद, धृतराष्ट्र द्वारा पांडु को वनवास भेजने का निर्णय, और पांडु की मृत्यु की कथा दर्शाई गई है। महाभारत के इस पहले भाग में पांडवों का वनवास शुरू होता है और उनके अध्यात्मिक गुरु द्वारा दी गई उपदेशों का वर्णन भी किया गया है। महाभारत के इस पहले भाग में धर्म, नैतिकता, और धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया गया है। यह महाकाव्य भारतीय संस्कृति और धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो हमारे जीवन में नैतिक मूल्यों को समझाने में सहायक है।
" महाभारत भाग २ "
महाभारत का भाग २ कोई सिंधुप्रेष्ठ भाग नहीं है बल्कि यह भारतीय महाकाव्य का द्वितीय अंश है जिसे "वनपर्व" या "अरण्यपर्व" के नाम से भी जाना जाता है। इस भाग में पांडवों का वनवास और उनके अज्ञातवास की कथा का वर्णन होता है। यह भाग महाभारत के प्रमुख विषयों में से एक है और इसमें धर्म, नैतिकता, और कर्तव्य के महत्वपूर्ण संदेश दिए जाते हैं।
महाभारत के भाग २ में पांडवों का अज्ञातवास, अरण्यवास, और वनवास की कथा का वर्णन होता है। पांडव राजा धृतराष्ट्र द्वारा वनवास भेजे जाते हैं और वन में विभिन्न घटनाओं का सामना करते हैं। इस भाग में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पांडवों को दिए गए उपदेशों का भी वर्णन होता है।
महाभारत के भाग २ में राजा युधिष्ठिर का राज्याभिषेक होता है और वनवास समाप्त होने के बाद वापसी के समय की कथा दिखाई जाती है। इस भाग में पांडवों के वापसी के समय उन्हें कई संघर्षों का सामना करना पड़ता है और उन्हें अपने अधिकार के लिए युद्ध करना पड़ता है।
महाभारत के भाग २ में धर्म, कर्म, और नैतिक मूल्यों के महत्वपूर्ण संदेश हैं। यह भाग पांडवों के संघर्षों, संघर्षों, और विजय की कथाएं दर्शाता है और धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश देता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश और संयम की महत्वपूर्ण बातें दिखाई जाती हैं।
" महाभारत भाग 3 "
महाभारत का भाग ३ कोई सिंधुप्रेष्ठ भाग नहीं है बल्कि यह भारतीय महाकाव्य का तृतीय अंश है जिसे "विराट पर्व" या "विराट युद्ध" के नाम से भी जाना जाता है। इस भाग में पांडवों का वनवास पूर्ण हो जाता है और उन्हें विराट नामक राजा के दरबार में वनवास गुप्त रूप से व्यतीत करने की कथा दिखाई जाती है।
महाभारत के भाग ३ में पांडवों का वनवास समाप्त हो जाता है और उन्हें अपने अधिकार के लिए युद्ध करना पड़ता है। इस भाग में पांडवों के वापसी के समय उन्हें कई संघर्षों का सामना करना पड़ता है और उन्हें अपने परिवार के साथ एक साथ रहने की चुनौती भी होती है। इस भाग में धर्म, कर्म, और नैतिक मूल्यों के महत्वपूर्ण संदेश हैं।
महाभारत के भाग ३ में विराट राजा के दरबार में अपने विशाल रूप, द्वारका नागरी के विभूषित दरबार, और राजदूतों के साथ भगवान कृष्ण के भेजे गए राज्याभिषेक का वर्णन होता है। इस भाग में राज्याभिषेक के बाद विराट नामक राजा द्वारा पांडवों के साथ विवाह समारंभ किया जाता है और उन्हें विशाल रूप से स्वागत किया जाता है।
महाभारत के भाग ३ में पांडवों की सारी संघर्षों, युद्धों, और विजय की कथाएं दर्शाई जाती हैं और धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश देता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश और संयम की महत्वपूर्ण बातें दिखाई जाती हैं।
" महाभारत भाग ४ "
महाभारत का भाग ४ विराट पर्व के नाम से भी जाना जाता है। यह महाभारत का चौथा भाग है जो युद्ध की तैयारियों और संघर्षों के बारे में रूपरेखा प्रस्तुत करता है। इस भाग में पांडवों का वनवास समाप्त हो जाता है और उन्हें विराट नामक राजा के दरबार में वनवास गुप्त रूप से व्यतीत करने की कथा दिखाई जाती है। इस भाग में पांडवों के वापसी के समय उन्हें कई संघर्षों का सामना करना पड़ता है और उन्हें अपने परिवार के साथ एक साथ रहने की चुनौती भी होती है।
इस भाग में विराट राजा के दरबार में अपने विशाल रूप, द्वारका नागरी के विभूषित दरबार, और राजदूतों के साथ भगवान कृष्ण के भेजे गए राज्याभिषेक का वर्णन होता है। इस भाग में राज्याभिषेक के बाद विराट नामक राजा द्वारा पांडवों के साथ विवाह समारंभ किया जाता है और उन्हें विशाल रूप से स्वागत किया जाता है।
महाभारत के भाग ४ में पांडवों की सारी संघर्षों, युद्धों, और विजय की कथाएं दर्शाई जाती हैं और धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश देता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश और संयम की महत्वपूर्ण बातें दिखाई जाती हैं।
" महाभारत भाग ५ "
महाभारत का पांचवा भाग है "उद्योग पर्व" या "विराट पर्व" के नाम से भी जाना जाता है। इस भाग में पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध की तैयारी का वर्णन होता है। धृतराष्ट्र के द्वारा सन्धि के लिए संवाद और शांतिदूत के नाम से भी जाने जाने वाले कृष्ण के संवाद का वर्णन होता है।
पांडवों और कौरवों के बीच वियोग और विवाद चल रहा था। पांडवों की ओर से सन्धि की प्रस्तावना की गई, लेकिन धृतराष्ट्र ने इसे स्वीकारने से इनकार कर दिया। इसके बाद युद्ध के लिए तैयारी शुरू हो गई। इस दौरान श्रीकृष्ण ने विदेह नगरी के राजा विराट के दरबार में भास्कर रूप में भ्रमण किया और पांडवों के समर्थन का आग्रह किया।
भ्रमण के दौरान श्रीकृष्ण ने विराट को भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण और दुर्योधन के बारे में बताया और उन्हें युद्ध में असंख्य सैन्यों के साथ युद्ध करने की सलाह दी। इसके बाद श्रीकृष्ण ने विराट को अपना भयानक विराट स्वरूप दिखाया और उसको अपने देवी सुदर्शना के साथ विवाह करने की प्रस्तावना की।
विराट ने श्रीकृष्ण के वचन स्वीकार किए और पांडवों के साथ संधि की प्रस्तावना को स्वीकार कर लिया। इसके बाद युद्ध से पहले हुई संधि और अनुशासन के बारे में चर्चा हुई और उसके बाद युद्ध शुरू होने से पहले पांडवों के वीर अभिमन्यु के बाल्य बलिदान का वर्णन होता है।
यह भाग महाभारत की एक महत्वपूर्ण घटना को दिखाता है जो युद्ध की तैयारी का पहला चरण है। इसमें पांडवों के बीच मित्रता और संधि की प्रस्तावना का वर्णन होता है जो बाद में युद्ध के लिए एक महत्वपूर्ण घटना साबित होता है।
इस तरह का संवाद और कथा से भरपूर महाभारत का यह भाग उपन्यास में आपको एक रोचक और अद्भुत सफर का आनंद देगा।
" महाभारत भाग ६ "
महाभारत का छठा भाग है "भीष्म पर्व" या "भीष्म युद्ध" के नाम से भी जाना जाता है। इस भाग में भीष्म पितामह के वचन, युधिष्ठिर के युद्ध में समर्थ्य की प्रशंसा, श्रीकृष्ण और भीष्म के संवाद का वर्णन होता है।
युद्ध भूमि पर आने से पहले धृतराष्ट्र के पुरोहित विदुर ने विदेह राज्य के राजा जनक से मिलकर उनसे उपदेश और समझदारी के वचन सुने और उन्हें प्रेरित किया था। इसके बाद धृतराष्ट्र ने भीष्म के समर्थ्य और युद्ध में उनकी सेवा की प्रशंसा की और उनसे उपदेश लिया।
भीष्म पितामह ने धृतराष्ट्र को युद्ध में समर्थ्य के लिए समझाया और उन्हें धर्मराज्य के महत्वपूर्ण तत्वों का उपदेश दिया। उन्होंने धृतराष्ट्र को भगवान श्रीकृष्ण के संवाद का वर्णन किया और उन्हें उसके दिव्य रूप के दर्शन का सुख भोगने का आग्रह किया।
भीष्म पितामह ने श्रीकृष्ण के साथ संवाद करते हुए अपने विरोध का वर्णन किया और उन्हें युद्ध में असंख्य सैन्यों के साथ युद्ध करने की सलाह दी। उन्होंने कुल्गुरु द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन और कौरव सैन्य के समर्थन का अधिकार उन्हें दिया और उन्हें युद्ध के लिए अभियोजन बताया।
भीष्म पर्व महाभारत के एक महत्वपूर्ण भाग को दर्शाता है जो भीष्म पितामह के समर्थ्य, धर्मराज्य के महत्वपूर्ण तत्वों का वर्णन, और उनके भगवान श्रीकृष्ण के संवाद का वर्णन करता है।
" महाभारत भाग ७ "
महाभारत का सातवां भाग है "द्रोण पर्व" या " द्रोण युद्ध" के नाम से भी जाना जाता है। इस भाग में द्रोणाचार्य के उपदेश, युध्द के दौरान कर्ण की मृत्यु और भीष्म के प्रतिज्ञान का वर्णन होता है।
धृतराष्ट्र के नायक, गुरु द्रोणाचार्य, ने युधिष्ठिर को राजमार्ग के लिए उपदेश दिया और उन्हें धर्मराज्य के महत्वपूर्ण तत्वों का संवाद और उपदेश दिया। उन्होंने धर्मराज्य के महत्वपूर्ण गुणों, सत्य, धर्म, और न्याय के महत्व को बताया और उन्हें धर्मयुद्ध के लिए प्रेरित किया।
द्रोणाचार्य के उपदेश के बाद युधिष्ठिर ने अपने सेना को संबोधित किया और उनसे युद्ध के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने सेनानायकों को साहस, समर्थ्य, और संकल्प के साथ युद्ध करने के लिए प्रेरित किया और उन्हें युद्ध में विजयी होने के लिए प्रेरित किया।
द्रोणाचार्य के उपदेश के बाद युद्ध के दौरान कर्ण की मृत्यु हुई। युद्ध में कर्ण को अन्तिम संघर्ष में अर्जुन ने मारा और उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद भीष्म के वचन हुए। भीष्म ने युद्ध में अपने प्रतिज्ञान को पूरा करने की संकल्प किया और उसकी मृत्यु हो गई।
द्रोण पर्व महाभारत के एक महत्वपूर्ण भाग को दर्शाता है जो द्रोणाचार्य के उपदेश, धर्मराज्य के महत्वपूर्ण तत्वों का संवाद, और युद्ध के दौरान हुई महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन करता है।
" महाभारत भाग ८ "
महाभारत का आठवां भाग है "कर्ण पर्व" या "कर्ण युद्ध" के नाम से भी जाना जाता है। इस भाग में कर्ण के युद्ध में वीरता, उनके धर्माचार्य द्रोणाचार्य और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद, और धर्म की विजय का वर्णन होता है।
युद्ध के आखिरी दिनों में, कर्ण की युद्ध भूमि पर वीरता और उनके धर्मयुद्ध के लिए प्रतिबद्धता का वर्णन होता है। उन्होंने अपने शस्त्रों का प्रयोग किया और अनेक रथीयों और योद्धाओं को मार गिराया। युद्ध में कर्ण का वीरता और साहस देखकर द्रोणाचार्य ने उन्हें धर्मयुद्ध करने की प्रशंसा की और उनसे धर्मराज्य के महत्वपूर्ण तत्वों का संवाद किया।
धर्मयुद्ध के दौरान, कर्ण ने अपने वचन और अर्जुन के वचनों के अनुसार धर्म की विजय के लिए युद्ध किया। उन्होंने अपने धर्माचार्य द्रोणाचार्य का भी विरोध किया और उनसे युद्ध करने की सलाह दी।
युद्ध के अंत में, कर्ण ने भगवान श्रीकृष्ण से मिलकर उनसे उपदेश और संवाद किया। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का उपदेश दिया और उनसे धर्मयुद्ध में समर्थ्य और साहस के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कर्ण को धर्मराज्य की स्थापना के लिए प्रेरित किया और उन्हें धर्मयुद्ध के महत्वपूर्ण उदाहरणों का उपदेश दिया।
कर्ण पर्व महाभारत के एक महत्वपूर्ण भाग को दर्शाता है जो कर्ण के धर्मयुद्ध में वीरता, उनके धर्माचार्य द्रोणाचार्य और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद, और धर्म की विजय का वर्णन करता है।
" महाभारत भाग ९ "
महाभारत का नौवां भाग है "शल्य पर्व" या "शल्य युद्ध" के नाम से भी जाना जाता है। इस भाग में शल्य राजा के युद्ध में वीरता, भीम के और शल्य के बीच युद्ध का वर्णन, और युद्ध के दौरान हुई घटनाओं का वर्णन होता है।
युद्ध के नौवें दिन में, शल्य राजा की युद्ध भूमि पर वीरता और उनके धर्मयुद्ध में प्रतिबद्धता का वर्णन होता है। उन्होंने अपने रथ के माध्यम से भीम के रथ को अवरुद्ध किया और उनसे युद्ध किया। भीम ने भी शल्य के धनुष्य से उसके रथ को नष्ट कर दिया और उन्हें पराजित किया।
युद्ध में शल्य के वीरता और साहस को देखकर धनंजय अर्जुन ने उनसे धर्मयुद्ध करने की प्रशंसा की और उनसे धर्मराज्य के महत्वपूर्ण तत्वों का संवाद किया।
शल्य पर्व महाभारत के एक महत्वपूर्ण भाग को दर्शाता है जो शल्य राजा के युद्ध में वीरता, भीम के और शल्य के बीच युद्ध का वर्णन, और युद्ध के दौरान हुई महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन करता है।
" महाभारत भाग १० "
महाभारत का दसवां भाग "सौमद्र विक्रम" है। इस भाग में भीष्म पितामह के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के वीरता और महत्व का वर्णन होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पराजित किया और अब भीष्म पितामह के पास पहुंचे हैं। इस भाग में भगवान श्रीकृष्ण के शक्तिशाली संवाद और उनके विचारों का वर्णन होता है।
भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए संदेशों में धर्म, कर्म, और जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का बड़ा महत्व होता है। उनके शब्दों से भीष्म पितामह को भी प्रभावित किया जाता है और उन्हें अपने धर्म के पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है।
सौमद्र विक्रम भाग महाभारत के एक महत्वपूर्ण भाग को दर्शाता है जो भगवान श्रीकृष्ण के वीरता और महत्व का वर्णन करता है। यह भाग महाभारत के अन्तिम युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण के संवाद का विस्तृत वर्णन करता है और उनके द्वारा दिए गए संदेशों के महत्वपूर्ण प्रभाव को दर्शाता है।
" महाभारत भाग ११ "
महाभारत का ग्यारहवां भाग "मौसल पर्व" है। इस भाग में महाभारत युद्ध के बाद हुए घोर युद्ध का वर्णन होता है। यह भाग भगवान श्रीकृष्ण के विदा के बाद होने वाले महाभारत युद्ध के नतीजे और उसके पश्चात के घटनाओं का विस्तृत वर्णन करता है।
मौसल पर्व में युद्ध के द्वारा हुए नाश के बाद धर्मराज युधिष्ठिर राज्य का संचालन करते हैं और धर्म और न्याय के मार्ग पर चलते हैं। इस भाग में उनके विचारों और निर्णयों का वर्णन होता है जो उन्होंने राज्य के पुनर्निर्माण के लिए किए।
मौसल पर्व में धृतराष्ट्र, गांधारी, और कौरवों के अन्य सदस्यों के जीवन का भी वर्णन होता है। इस भाग में उनके विदा के बाद उनके निर्णयों और उनके जीवन के आगे के चरणों का भी वर्णन होता है।
" महाभारत भाग १२ "
महाभारत का बारहवां भाग "शांति पर्व" है। यह भाग महाभारत युद्ध के नतीजे के बाद की कथाएं और घटनाएं बताता है। इस भाग में युद्ध के बाद हुई सम्पूर्ण घटनाएं और राजा धृतराष्ट्र, गांधारी, धृतराष्ट्र की रानी, और अन्य कौरव सदस्यों के जीवन का विस्तृत वर्णन होता है।
शांति पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर राज्य का संचालन करते हैं और धर्म और न्याय के मार्ग पर चलते हैं। इस भाग में उनके विचारों और निर्णयों का वर्णन होता है जो उन्होंने राज्य के पुनर्निर्माण के लिए किए। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा धर्म और न्याय के सिद्धांतों का भी बड़ा महत्व होता है।
शांति पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद का वर्णन होता है। इस भाग में उनके द्वारा दिए गए उपदेशों और संदेशों के महत्वपूर्ण प्रभाव का वर्णन होता है।
" महाभारत भाग १३ "
महाभारत का तेरहवां भाग "अनुषासन पर्व" है। यह भाग महाभारत के महत्वपूर्ण भागों में से एक है और यह महाभारत युद्ध के बाद के समय की कथाओं का विस्तृत वर्णन करता है।
अनुषासन पर्व में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए उपदेश दिया जाता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश, धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों के जवाब, और उनके विचारों का वर्णन होता है।
अनुषासन पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर राज्य का संचालन करते हैं और धर्म और न्याय के मार्ग पर चलते हैं। इस भाग में उनके विचारों और निर्णयों का वर्णन होता है जो उन्होंने राज्य के पुनर्निर्माण के लिए किए।
अनुषासन पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों के जवाब में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धर्म, न्याय, और नीति के ज्ञान का उपदेश दिया जाता है। इस भाग में धर्मराज युधिष्ठिर को राज्य के संचालन में सहायता मिलती है और उन्हें धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है।
" महाभारत भाग १४ "
महाभारत का चौदहवां भाग "अनुषासन पर्व" है। यह भाग महाभारत के महत्वपूर्ण भागों में से एक है और यह महाभारत युद्ध के बाद के समय की कथाओं का विस्तृत वर्णन करता है।
अनुषासन पर्व में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए उपदेश दिया जाता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश, धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों के जवाब, और उनके विचारों का वर्णन होता है।
अनुषासन पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर राज्य का संचालन करते हैं और धर्म और न्याय के मार्ग पर चलते हैं। इस भाग में उनके विचारों और निर्णयों का वर्णन होता है जो उन्होंने राज्य के पुनर्निर्माण के लिए किए।
अनुषासन पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों के जवाब में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धर्म, न्याय, और नीति के ज्ञान का उपदेश दिया जाता है। इस भाग में धर्मराज युधिष्ठिर को राज्य के संचालन में सहायता मिलती है और उन्हें धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है।
" महाभारत भाग १५ "
महाभारत का पंद्रहवां भाग "अश्वमेधिक पर्व" है। यह भाग महाभारत के महत्वपूर्ण भागों में से एक है और यह महाभारत युद्ध के बाद के समय की कथाओं का विस्तृत वर्णन करता है।
अश्वमेधिक पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया जाता है। इसमें राजा युधिष्ठिर के यज्ञ का विस्तृत वर्णन होता है और उसमें बड़े-बड़े याजकों के आगमन का वर्णन किया जाता है। यज्ञ के दौरान विभिन्न राजाओं और राजकुमारों के साथ विभिन्न उत्सवों का आयोजन किया जाता है और भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश दिए जाते हैं।
इस भाग में अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं होती हैं, जिनमें से एक घटना है श्रीकृष्ण और कर्ण के बीच हुई। कर्ण अश्वमेध यज्ञ का योग्य मानता है और उसे यज्ञ को विघ्नित करने के लिए श्रीकृष्ण ने उससे विचार करने को कहा। इसमें श्रीकृष्ण ने कर्ण को यज्ञ को विघ्नित न करने के लिए प्रेरित किया और उसे धर्मपरायण होने की सलाह दी।
" महाभारत भाग १६ "
महाभारत का सोलहवां भाग "मौद्द्धट पर्व" है। यह भाग महाभारत के महत्वपूर्ण भागों में से एक है और यह महाभारत युद्ध के बाद के समय की कथाओं का विस्तृत वर्णन करता है।
मौद्धट पर्व में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को राज्य का संचालन करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश, धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों के जवाब, और उनके विचारों का वर्णन होता है।
मौद्धट पर्व में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को राज्य संभालने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसमें धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों के जवाब में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धर्म, न्याय, और नीति के ज्ञान का उपदेश दिया जाता है।
मौद्धट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर को राज्य के संचालन में सहायता मिलती है और उन्हें धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस भाग में उनके विचारों और निर्णयों का वर्णन होता है जो उन्होंने राज्य के पुनर्निर्माण के लिए किए।
" महाभारत भाग १७ "
महाभारत का सत्रहवां भाग "महाप्रस्थानिक पर्व" है। यह भाग महाभारत के महत्वपूर्ण भागों में से एक है और यह महाभारत के अंतिम भागों में से एक है।
महाप्रस्थानिक पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर के विधान के बाद पांडवों का वनवास शुरू होता है। इसमें धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा राज्य सम्भालने के बाद उनके पुत्र अर्जुन के साथ श्रीकृष्ण की संवादों का वर्णन होता है। भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर और अर्जुन को विभिन्न ज्ञान और उपदेश देते हैं जो उन्हें अपने अगले वनवास के दौरान अनुसरण करने के लिए दिए जाते हैं।
इस भाग में अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं होती हैं, जिनमें से एक घटना है धृतराष्ट्र, गांधारी, शकुनि और कौरवों के साथ विदाई का संवाद। धृतराष्ट्र और गांधारी वनवास जाने का निर्णय लेते हैं और कौरवों को वनवास जाने की सलाह दी जाती है।
" महाभारत भाग १८ "
महाभारत का अठारहवां और अंतिम भाग "महाभारत भाग १८" है। यह भाग महाभारत के पूरे ग्रंथ का समापन करता है और भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु का वर्णन करता है।
महाभारत भाग १८ में धर्मराज युधिष्ठिर के अनुशासन प्रस्थान के बाद, पांडवों का वनवास समाप्त होता है। वनवास के बाद धर्मराज युधिष्ठिर को कुरुक्षेत्र में राज्य का सूचन दिया जाता है। इस भाग में भगवान श्रीकृष्ण का समाधान भी वर्णित है, जिसमें उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर को अपने जीवन का परम उद्देश्य बताया और उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
महाभारत भाग १८ में युद्धरत्नी और श्रीकृष्ण की मृत्यु का वर्णन होता है। युद्धरत्नी भीम की पत्नी थी और श्रीकृष्ण उनके प्रत्येक विधवा से विदा लेने जाते थे। श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद द्वारका का समापन होता है और वह यादवों के बीच झगड़े के कारण तबाह हो जाती है।
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